Saturday, August 23, 2008

कुछ परिभाषाएं

नेता : वह शख्स जो अपने देश के लिये आपकी जान की कुर्बानी देने के लिये हमेशा तैयार रहता है।

पड़ोसी : वह महानुभाव जो आपके मामलों को आपसे ज्यादा समझते हैं।

शादी : यह मालूम करने का तरीका कि आपकी बीबी को कैसा पति पसन्द आता।

विशेषज्ञ : वह आदमी है जो कम से कम चीजों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानता है।

ज्ञानी : वह शख्स जिसे प्रभावी ढंग से, सीधी बात को उलझाना आता है।

सभ्य व्यवहार : मुंह बन्द करके जम्हाई लेना ।

आमदनी : जिसमें रहा न जा सके और जिसके बगैर भी रहा न जा सके।

राजनेता : ऐसा आदमी जो धनवान से धन और गरीबों से वोट इस वादे पर बटोरता है कि वह एक की दूसरे से रक्षा करेगा।

आशावादी : वह शख्स है जो सिगरेट मांगने पहले अपनी दियासलाई जला ले।

नयी साड़ी : जिसे पहनकर स्त्री को उतना ही नशा हो जितना पुरुष को शराब की एक पूरी बोतल पीकर होता है।

मनोवैज्ञानिक : वह व्यक्ति, जो किसी खूबसूरत लड़की के कमरे में दाखिल होने पर उस लड़की के सिवाय बाकी सबको गौर से देखता है।

दूसरी शादी : अनुभव पर आशा की विजय।

कूटनीतिज्ञ : वह व्यक्ति जो किसी स्त्री का जन्मदिन तो याद रखे पर उसकी उम्र कभी नहीं।

Monday, August 18, 2008

क्या इस देश के मुकद्दर में केवल समझौता सिंह ही लिखे हैं?

मैंने अपने एक मित्र से पूछा, 'अगर तुम प्रधान मंत्री बन गए तो सबसे पहला काम क्या करोगे?'
मित्र ने जवाब दिया, 'उन सारे रास्तों का चक्कर लगाऊँगा जहाँ अक्सर ट्रेफिक जाम में फंसता था. क्या मजा आएगा गुरु खाली सुनसान सड़कों पर ड्राइविंग का!'
'और दूसरा काम?' मैंने पूछा.
मित्र अत्यन्त उत्साह से बोला, 'सारे राष्ट्रिय राजमार्गों का चक्कर लगाऊंगा. जानते हो प्रधान मंत्री को टोल टेक्स माफ़ है'.
'और तीसरा काम?', मैं अधीरता से बोला.
'यह तुम बताओ, तुम्ही ने मुझे प्रधान मंत्री बनाया है', उसने गेंद मेरे कोर्ट में डाल दी.
'अरे भई अपने मंत्रीमंडल में किसे लोगे?' मैंने कहा.
'किसे लूँगा यह बादमें देखेंगे, पहले यह पूछो कि किसे नहीं लूँगा', वह मुस्कुराया.
'अच्छा चलो यही पूछा', मैं बोला.
'यार बड़ी लम्बी लिस्ट है. इन साठ सालों में ऐसे नेताओं की संख्या बहुत ज्यादा हो गई है जिन्हें में अपने मंत्रिमंडल में किसी हालत में नहीं ले सकता. अच्छे लोग तलाशने में काफ़ी समय लगेगा'.
'फ़िर सरकार कैसे चलेगी?', मैंने चिंता व्यक्त की.
'बाबू चलाएंगे', वह लापरवाही से बोला, 'यह साले मंत्री तो सिर्फ़ माल काटते हैं. असली सरकार तो बाबू चलाते हैं. सुप्रीम कोर्ट भी बाबुओं के सामने नतमस्तक होता है'.
'यह साझा सरकार है, समर्थन देने वाली पार्टियों के मालिक जिसे चाहेंगे मंत्री बनाना पड़ेगा, वरना सरकार एक दिन भी नहीं चलेगी'. मैंने उसे सावधान किया.
'न चले साली सरकार', वह बोला, 'मैं कोई समझौता सिंह हूँ क्या जो इन सालों की सुनूंगा'.
'यह तेरे ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव ले आयेंगे', मैंने उसे डराया.
'ले आने दे सालों को अविश्वास प्रस्ताव. लोक सभा में सारी दुनिया के सामने नंगा कर दूँगा सालों को, और इस्तीफा स्पीकर की मेज पर पटक कर बाहर निकल जाऊंगा. यह कहते हुए वह कमरे से बाहर निकल गया.
'अरे सुन तो', मैं उस के पीछे भागा.
'किसी और को पकड़ ले प्रधान मंत्री बनने के लिए', और वह लो फ्लोर वाली बस में चढ़ गया.
मैंने ठंडी साँस ली, 'क्या इस देश के मुकद्दर में केवल समझौता सिंह ही लिखे हैं?'

Saturday, August 16, 2008

आप क्या इन्हें वोट देंगे?

पति - नेताजी ने बहुत अच्छा भाषण दिया स्वतंत्रता दिवस पर.
पत्नी - भाषण दिया या पढ़ कर सुनाया?
पति - एक ही बात है.
पत्नी - नहीं एक बात नहीं है. भाषण में बहुत सी बातें उन के ख़ुद के लिए भी थीं. अच्छा होता वह उन बातों को पढ़ लेते और अमल करते.
पति - मतलब, दूसरों को नसीहत पर ख़ुद मियां फजीहत?


पति - साठ साल के तुष्टिकरण पर पानी फ़िर गया. सुबह तिरंगा और शाम को अलगाववादियों का झंडा. खाया देश का गाया विदेश का.
पत्नी - धर्म की राजनीति करेंगे तो यही होगा.
पति - पर वह तो ख़ुद को धर्म निरपेक्ष कहते हैं. कल दूसरों को नसीहत भी दी उन्होंने कि धर्म पर राजनीति न करें.
पत्नी - चोर भीड़ में शामिल होकर पीछा करने वाला बन जाता है. दूसरों पर ऊँगली उठाता है और चिल्लाता है चोर चोर.
पति - मतलब, धर्म निरपेक्षता के परदे में कम्युनल?


मनमोहन जी की साफ़-सुथरी, हरी-भरी और सुरक्षित दिल्ली में रहने वाली पत्नियाँ आज कल बहुत परेशान हैं. एक ऐसी ही पत्नी ने अपने बाज़ार से सामान लेने जाते वरिष्ट नागरिक पति से कहा -
देखो जी,ब्लू लाइन बस से दूर रहना पता नहीं कब कुचल दे?
सड़क पर मत चलना, पता नहीं कहाँ गड्ढा हो?
फुटपाथ पर मत चलना, पता नहीं कौन दुकानदार ऐतराज कर दे?
बीआरटी कारीडोर की तरफ़ से मत जाना, पता नहीं कब निगल ले?
बिल्डिंग के बगल में मत चलना पता नहीं कब गिर पड़े?
पुलिस दिखे तो रास्ता बदल लेना, पता नहीं किस बात पर धर ले?
कोई वीआइपी आस-पास हो तो मां दुर्गा से सुरक्षा की प्रार्थना करना. में भी करूंगी.
पति घबरा गए और घर वापस आ गए. बोले, 'में नहीं जाता, घर में रहना ठीक है.'
पत्नी बोली, 'पर इस में भी खतरा है, पता नहीं कौन आकर लूट ले और मार दे'.

Sunday, August 10, 2008

यार चिंता क्यों करते हो?

नेता जी पिछले कुछ दिनों से परेशान थे। न ठीक से नींद आ रही थी। न ही ठीक से खा-पी पा रहे थे। गम सुम से बैठे रहते थे। घर वाले परेशान थे। डाक्टर को बुलाया गया। उस ने कहा मुझे नहीं ज्योतिषी को बुलाओ। चुनाव आ रहे हें। पाँच साल तक जनता के लिए कुछ न करने वाले खाऊ नेताओं को यह समस्या होती ही है। इस में कुछ असामान्य नहीं है।

ज्योतिषी को बुलाया गया। उस ने कहा चिंता की कोई बात नहीं है। आज कल यह बीमारी इन जैसे सभी नेताओं को हो रही है। आने वाले चुनाव में टिकट मिलेगा या नहीं, अगर मिल गया तो जीतेंगे या नहीं, यह चिंता सब को खाए जा रही है। लेकिन चिंता करने की जरूरत नहीं है। आख़िर हम ज्योतिषी किस लिए हें? वही पुरानी दवा काम आएगी। हर पार्टी के इन जैसे नेताओं की एक गोपनीय मीटिंग बुलाई जायेगी। उस में फ़ैसला किया जायेगा कि जो जीतेगा वह बाकी सब का ख्याल रखेगा। हर बार ऐसा हुआ है, इस बार भी ऐसा ही होगा। नेता-नेता मौसेरे भाई होते हें। और फ़िर जनता साली किसी को तो चुनेगी। उस के सामने रास्ता ही क्या है?

नेता जी कराहे और बोले कि समस्या इतनी आसन नहीं है जितनी आप समझ रहे हें। पिछली बार जो हारा था उस का मैंने कोई ख्याल नहीं रखा। टिकट तो मुझे मिलेगा नहीं, यह पक्का है। पार्टी मुझ से खुश नहीं है। और जनता, वह तो मुझे मारने को दौड़ रही है। अब जो भी जीतेगा तो वह मेरा ख्याल क्यों रखेगा?

'अब भुगतो', नेता जी की पत्नी चिल्लाईं, 'कितना समझाया मैंने, देखो बेईमानी में बेईमानी मत करो। चोरों के भी कुछ उसूल होते हें। जनता से तो विश्वासघात कर ही रहे हो, अपने साथी नेताओं से तो विश्वासघात मत करो। नेता ही नेता के काम आता है। पर यह माने ही नहीं'।

ज्योतिषी जी ने गर्दन हिलाई, 'भाभी जी ठीक कह रही हें। ऐसा आपने क्यों किया? अब तो मामला उलझ गया।बैसे मैं कोशिश करूंगा कुछ हो जाए'।

उस रात दूसरे नेता का फ़ोन आया। उसने कहा, 'यार चिंता क्यों करते हो, तुम ने राजनीति के सिद्धांतों का पालन नहीं किया पर हम तो करते हें। बस ऐसा करो, कल एक प्रेस काफ्रेंस बुलाओ और मेरे पक्ष में बयान दो। कहो कि तुम्हें टिकट नहीं चाहिए। में तुम्हारा ख्याल रखूंगा'।

नेता जी ने गर्दन हिलाई। और कोई रास्ता भी नहीं था। मरता क्या न करता। किसी ने सच कहा है, जनता को धोखा दे कर तो बच सकते हो, पर दूसरे नेता को धोखा देकर नहीं।

Thursday, August 7, 2008

मैंने तय कर लिया है किसे वोट दूँगा

पिछले दिनों विश्वास मत पर लोक सभा में जो हुआ उसके बाद मैंने एक फ़ैसला किया है। आज उस फैसले के बारे में आप सब को बताता हूँ। आप लोग चाहें तो आप भी ऐसा ही फ़ैसला कर सकते हें।

जानते तो सब थे। मानते भी सब थे। पर अपनी आंखों से देखा नहीं था। इसका फायदा उठाकर यह नेता बच जाते थे। अब जब अपनी आंखों से यह सब लोक सभा में देख लिया तो किसी शक की कोई गुंजाइश ही नहीं रही। यह नेता जो हमारे वोटों पर चुने जाते हें, अपने वोट कम-से-कम तीन करोड़ में बेचते हें. अब यह तो सरासर बेईमानी हुई कि हमारा वोट तो फ्री में ले जाओ और अपने वोट को तीन करोड़ में बेचो। अरे यह हमारा ही तो वोट है जो इन नेताओं को इस लायक बनाता है कि वह अपना वोट बेच सकें।

इस लिए मैंने फ़ैसला किया है कि जो मुझे मेरे वोट की सबसे ज्यादा कीमत देगा मैं अपना वोट उसे ही दूँगा। अमर सिंह की तरह मैं दूसरों के लिए एजेंट का काम भी करूंगा। मेरे अपने घर में ही ६ वोट हें। आप में से जो चाहें उनके लिए भी मैं भाव-ताव कर सकता हूँ।

आप सबसे प्रार्थना है कि मेरे इस संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं और भारत में प्रजातंत्र को मजबूत करें।

Sunday, August 3, 2008

कुछ टिप्पणियाँ जों कवितायें बन गई

शीला दीक्षित ने कहा,
कहाँ है मंहगाई?
मुझे तो आज तक मिलने नहीं आई,
न ही किसी नागरिक ने फोन किया,
कि शहर में मंहगाई है आई,
चुनाव आए तो बहकाने लगे जनता को,
इन लोगों को शर्म भी नहीं आई.

राजनीति में चांदी के जूते नहीं मारे जाते सबको,
अधिकाँश को तो मारे जाते हैं प्रजातंत्र के जूते,
वह भी भिगोकर पानी में,
और उनकी आवाज भी नहीं होती,
मारने वाला राजनेता,
मार खाने वाला आम आदमी,
वह जूते मारें और तुम खाए जाओ,
यह गीता का ज्ञान नहीं है,
गीता कहती है संघर्ष करो,
अन्याय के ख़िलाफ़, जुल्म के ख़िलाफ़,
एहसानफ़रामोशी, विश्वासघात के ख़िलाफ़,
कर्म करो, वह फल देगा, उसका वादा है यह,
पर तुम कर्म तो करो.

छोटो-मोटी चोरी छोड़ो नेता बन जाओ,
एक वोट डालोगे तीन करोड़ मिलेंगे,
मान्यवर कहलाओगे अलग से,
अगर सबको पता भी चल गया तो क्या होगा?
लोक सभा में रिश्वत लेना अपराध नहीं है,
आज पुलिस डंडे मारती है,
कल सलाम करेगी नेता जी को,
आज टू व्हीलर चुराते हो,
कल आगे पीछे होंगी फोर व्हीलर,
भइया मौका है हाथ से मत जाने दो,
जल्दी चुनाव होंगे,
करो एक दो मर्डर,
ले लो एंट्री पोलिटिक्स में.

सरकार जीत गई है विश्वास मत,
एटमी करार लाएगा विजली,
हर घर में, हर गाँव, हर शहर में,
शीला दीक्षित भी खुश,
बिना विजली के परेशान दिल्ली के निवासी भी खुश,
राहुल गाँधी भी खुश,
कलावती भी खुश,
मनमोहन खुश कुर्सी बच गई,
अमर सिंह खुश मुक़दमे वापस,
सोरेन खुश कुर्सी मिल गई,
कितने सारे खुश बन गए करोड़पति,
देश प्रगति के रास्ते पर अग्रसर है,
सब खुश हैं, तुम क्यों नाखुश हो,
सब आगे जा रहे हैं, तुम घिसट रहे हो,
बेबकूफ कहीं के.

Friday, August 1, 2008

क्या मनमोहन सिंह ने वोट डाला था?

आज एक पोस्ट पढ़ कर एक बात दिमाग में आई, शिवराज पाटिल, प्रफुल पटेल, मनमोहन सिंह को तो जनता ने नहीं चुना था, क्या इन्होनें लोक सभा में विश्वास मत पर वोट दिया था? यह सब लोक सभा के सदस्य नहीं हैं और मतदान लोक सभा में हुआ था. यह सरकार में मंत्री हैं, मनमोहन सिंह तो प्रधान मंत्री हैं, पर लोक सभा को इस सरकार पर विश्वास है क्या ऐसा वोट यह सब
दे सकते हैं?

क्या कोई ब्लागर इस बारे में जानकारी दे सकते हैं?