Wednesday, November 26, 2008

लोकतंत्र का विकल्प

एक पत्रकार ने जैन संत आचार्य महाप्रज्ञ से पूछा - 'लोकतंत्र का विकल्प क्या हो सकता है?'
आचार्य ने उत्तर दिया - 'लोकतंत्र का विकल्प क्यों खोजते हो? शासनतंत्र की जितनी प्रणालियाँ हैं, उन में सबसे अच्छा विकल्प है लोकतंत्र. उस की श्रेष्टता अभी खंडित नहीं हुई है. फ़िर विकल्प की खोज किस लिए? विकल्प खोजना चाहिए लोकतंत्र को चलाने वाले हाथों का, जो हाथ लोकतंत्र की डोर थामने में काँप रहे हैं.' 

लोकतंत्र ने सत्ता को इतना गतिशील बनाया कि वह जाति, सम्प्रदाय, गरीबी, अमीरी - इन सबसे परे जाकर किसी भी योग्य व्यक्ति का वरण कर सकती है. यह लोकतंत्र के चरित्र का सबसे उजला पक्ष है, किंतु लोकतंत्र को चलाने वाले लोग अभी योग्यता की कोई कसौटी ही निश्चित नहीं कर पाये हैं. 

योग्यता की दो कसौटियां हो सकती हैं - चरित्र बल और बौद्धिक छमता. पता नहीं, क्यों लोकतंत्र के साथ अभी इन कसौटियों का मैत्री सम्बन्ध स्थापित नहीं हो रहा है. सत्ता और प्रशासन की कुर्सी पर आसन बिछाने वाले लोगों का अर्थ के प्रति घोर आकर्षण बता रहा है कि लोकतंत्र के सारथि का चरित्र-बल उन्नत नहीं है. अर्जुन को महाभारत की रणभूमि में सारथि मिल गया था. लोकतंत्र का अर्जुन अभी भी सारथि की खोज में है. महाभारत हो रहा है पर अर्जुन को सारथि नहीं मिल रहा है.   

(लोकतंत्र - नया व्यक्ति नया समाज से साभार)  

Monday, November 24, 2008

भारत वर्तमान संकट से कैसे निपटे?

भारतीय व्यवसाय जगत के प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श के अवसर पर श्री लालकृष्ण आडवाणी के भाषण के कुछ अंश:

"इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत वर्तमान संकट से सफलतापूर्वक निपटने और इसे वास्तव में, आगे की ओर लम्बी छलांग लगाने के महत्वपूर्ण अवसर में परिवर्तित करने में सक्षम है। तथापि, हम इस बदलाव को सफलता तभी कह सकते हैं जब देश से गरीबी मिट जाए, कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कायाकल्प हो जाए, और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के हमारे भाई-बहन समान अवसरों का लाभ उठाने के लिए आर्थिक रूप से सुदृढ़ बन जाए।" 

Saturday, November 8, 2008

मतदान

वह कहते हैं मतदान करो,
मन कहता है मत दान करो.

मतदान हमारी ड्यूटी है,
यह प्रजातंत्र की ब्यूटी है.

एक थैली के चट्टे-बट्टे,
भ्रष्टाचारी हट्टे-कट्टे.

कैसे इन को मतदान करुँ,
मन कहता है मत दान करुँ.