Sunday, November 28, 2010

न उनका सोच बदला न हमारा

यह पोस्ट मैंने २८ नवंबर २०१० को लिखी थी. वर्तमान परिस्थितियों में आ ज इसमें कुछ परिवर्तन किया है. 

भारत के आजाद होने के बाद नेहरु के नेतृत्व में अवसरवादी राजनीतिबाजों ने एक सोच का निर्माण किया. यह सोच था सेवा के नाम पर सत्ता की राजनीति. भारत को एक प्रजातंत्र घोषित किया गया पर तौर-तरीके सब उस राजतन्त्र के ही रखे गए जिस के अंतर्गत भारत पर अंग्रेजों ने लम्बे समय तक शासन किया. कुछ बदला तो सिर्फ इतना कि 'ब्रिटिश कालोनी भारत' का नाम बदल कर 'भारत गणराज्य' कर दिया गया. जिस सोच के अंतर्गत यह किया गया वह सोच आज भी नहीं बदला है. आज भी सेवा के नाम पर सत्ता की राजनीति हो रही है. अंग्रेज राजपरिवार की जगह नेहरु राजपरिवार ने ले ली है. नेहरु गए तो उनकी पुत्री इंदिरा गईं. वह गईं तो उनके पुत्र राजीव गए. राजीव गए तो उनकी विदेशी पत्नी गईं. उनके बाद उनके पुत्र राहुल के लिए राजगद्दी सुरक्षित रखी जा रही है. कुछ दिन पहले प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने यह संकेत भी दे दिया कि जल्दी ही राहुल को पीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया जाएगा.

दिल्ली चुनावों में कांग्रेस को जनता ने नकार दिया था, पर सत्ता के लालच में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आआपा) ने कांग्रेस में जान फूंक दी और उसके समर्थन से अपनी सरकार बना ली. आजादी के बाद किसी पार्टी ने जनता को इतना बड़ा धोखा कभी नहीं दिया था. जो केजरीवाल कांग्रेस को सब से भ्रष्ट पार्टी कहते थे, जिन्होनें शीला जी के खिलाफ ३७० पेजों की चार्ज शीट बनाई थी, संसद मार्ग पुलिस पुलिस स्टेशन में शीला जी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी, अब शीला जी  को ईमानदार घोषित कर रहे हैं. कुर्सी के लालच में अब आआपा कांग्रेस की 'एक प्राण दो शरीर' हो गई है.

आजादी से पहले भारत में दो वर्ग थे, एक जो राज्य करता था और दूसरा जिस पर राज्य किया जाता था. आज भी यही हो रहा है. जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है पर जो चुना जाता है वह तुरंत राजा बन जाता है. इसे चुनो या उसे चुनो, बात एक ही है. लेबल अलग है पर सब राजनीतिबाज एक ही मिट्टी से बने हैं. जनता क्या चाहती है इस से किसी को कोई मतलब नहीं. आज भी जनता इन राजा बने प्रतिनिधियों के सामने ऐसे ही विवश है जैसे आजादी से पहले अंग्रेज राजाओं के सामने थी.

अंग्रेज रानी की जगह राष्ट्रपति ने ले ली. रानी के रेजिडेंट अब राज्यपाल कहलाते हैं. एक राजा केंद्र में है. हर राज्य का अपना एक अलग राजा है. यह सब सामूहिक रूप से मिल कर भारतीय जनता पर राज्य करते हैं. मजे की बात यह है कि यह सब जनता द्वारा ही चुने जाते हैं. बस यही एक फर्क है राजतन्त्र और प्रजातंत्र में. राजतन्त्र में राजा पहले से तय होता है, प्रजातंत्र में जनता द्वारा चुना जाता है. भारतीय राजतान्त्रिक प्रजातंत्र में राजा थोपने की प्रथा शुरू से ही चल रही है.

अंग्रेजों की पुलिस अब इन प्रजातान्त्रिक राजाओं की पुलिस है. अंग्रेजों की अदालतें अब इन की अदालतें हैं. अंग्रेजो के अफसर अब इन के अफसर हैं. अंग्रेज राजाओं की पुलिस ने इतने भारतीयों को नहीं मारा होगा जितने भारतीयों को इन भारतीय राजाओं की पुलिस ने मार दिया है.

अगर भारत में प्रजातंत्र होता तब जन-प्रतिनिधि जनता के ट्रस्टी होते. प्रधानमंत्री प्रधानसेवक कहलाता. राजनीति जैसा कोई शब्द न होता. उसकी जगह प्रजानीति शब्द प्रयोग किया जाता. नीतियाँ जनता के लिए बनाई जातीं. जन-प्रतिनिधि जनता की सेवा करते, उन पर हकूमत नहीं. बचपन में प्रजातंत्र के बारे में जो पढ़ा था वह सही होता. कानून जनता की मदद के लिए होते, उन पर शासन करने के लिए नहीं. पुलिस जनता की जान-माल की रक्षा करती. अदालतों में सीधा, सच्चा, सस्ता न्याय मिलता.

आजादी के बाद की कई पीढियां इस सोच के साथ जीती रही हैं. नई पीढ़ी भी इस सोच के साथ खुश है. यह सोच कब बदलेगा. क्या कभी बदलेगा भी?