Saturday, April 5, 2008

सत्ता का नशा

कीमतें आसमान छू रही हैं,
कमर तोड़ दी है महंगाई ने,
पार्टी हाई कमान घबरा गई है,
विरोधी पक्ष खूंखार हो रहा है,
पर जब उनसे पूंछा गया,
तो नमक छिड़क दिया उन्होंने जख्मों पर,
तरक्की करती अर्थव्यवस्था मैं,
कीमतें तो बढ़ेंगी ही,
और कोई खास तो नहीं बढ़ी हैं कीमतें,
व्यर्थ ही चिल्ला रहे हैं.

लगता है सत्ता का नशा,
सर चढ़ गया है.
कुछ दिन पहले जो तारीफ़ हुई थी,
प्रधान मंत्री के मुखारविंद से,
उसने और सर चढ़ा दिया लगता है,
प्याज पर बदल गई थी सरकार,
यहाँ तो हर चीज पहुँच के बाहर हो गई है,
आम जनता का आक्रोश,
और उन का घमंड,
देखें कौन जीतता है?

Thursday, April 3, 2008

Negative thought process

उन्होंने उन्हें कुछ कह दिया,
उन्हें बुरा लग गया,
बुरा तो शायद सब को लगता,
पर सब मुख्य मंत्री नहीं हैं,
आम आदमी का बुरा लगना,
कोई खास बात नहीं है भारत मैं,
बुरा लगना तो अधिकार है,
खास आदमी का,

यहाँ वह चूक गए और गलती कर बैठे,
कह दिया कुछ खासमखास को,
पकड़े गए, माफ़ी मांगी,
बेटी भी कहा उन को,
पर मुसीबत मैं पड़ गए,
बहुत कुछ खोना पड़ेगा.

क्यों कह देते हैं लोग ऐसी बातें?
क्या हासिल होता है इस से?
किसी को कुछ कह कर सुख मिलता है क्या?
यदि हाँ, तब तो यह नकारात्मक सोच है.