आज भारत में राजनीति सेवा का साधन न रहकर एक व्यवसाय बन गयी है और व्यवसाय व्यक्ति अपने फायदे के लिये करता है समाजसेवा के लिये नहीं. आज राजनीतिबाज जो कर रहे हैं वह एक धोखा है जो प्रजातंत्र के नाम पर वह जनता को दे रहे हैं.
यह शब्द 'राजनीति' ही सारे फसाद की जड़ है. भारत में प्रजातंत्र है, अब प्रजातंत्र में भला राजनीति का क्या काम? शब्दों में बहुत शक्ति होती है. शब्द अक्षर से बनते हैं और अक्षर ब्रह्म का एक रूप है. हम जो शब्द प्रयोग करते हैं वह हमारे सोच का प्रतिनिधित्व करता है और बाद में हमारे कर्मों को प्रभावित करता है. यह कहना कि 'मैं राजनीति में प्रजा की सेवा के लिए आया हूँ', एक धोखा है. राजनीति का अर्थ है वह नीतियाँ बनाना और पालन करना जो राज करने के लिए जरूरी हैं. प्रजा की सेवा के लिए जो नीतियाँ बनेंगी उनका एकमात्र उद्देश्य प्रजा की सेवा करना होगा.
हमारे देश में प्रजा की सेवा के नाम पर राजतन्त्र चलाया जा रहा है. जनता जिन्हें अपना प्रतिनिधि चुनती है वह चुने जाने के बाद स्वयं को राजनेता घोषित कर देते हैं, और प्रजा पर शासन करने लगते हैं. कुछ राजनीतिबाजों ने तो परिवार का राज चला रखा है. अगर वह जन-प्रतिनिधि होते तो आज भारत का रूप दूसरा ही होता. कोई जन सेवा के लिए भ्रष्टाचार नहीं करेगा, कोई सेवा करने के लिए हिंसा करके चुनाव नहीं जीतेगा. सेवा एक से ज्यादा व्यक्ति एक साथ कर सकते हैं. राज एक ही व्यक्ति या एक दल या एक कोलिशन करता है. यह लोग अपनी जरूरतों के लिए इकठ्ठा होते हैं,जनता के दुखों से द्रवित होकर नहीं. हाँ यह बात अवश्य है कि ऐसा वह, जनता के लिए कर रहे हैं, कह कर करते हैं. यही वह धोखा है जो आज इस देश में राजनीतिबाज जनता को दे रहे हैं.
'राजनीति' की जगह 'प्रजानीति' शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए. 'राजनेता' की जगह 'जन-प्रतिनिधि' का प्रयोग होना चाहिए. यह जन-प्रतिनिधि एक ट्रस्टी के रूप में काम करें, जैसे भरत ने राम का प्रतिनिधि बन कर अयोध्या का प्रबंध किया था. आज भारत को 'राम राज्य' नहीं 'भरत का प्रबंधन' चाहिए. आज देश को नेता नहीं ट्रस्टी चाहिए. आज जनता को शासक नहीं सेवक चाहिए. दशरथ के राज्य में अन्याय हुआ था, श्रवण कुमार की हत्या, राम को वनवास. राम के राज्य में भी अन्याय हुआ था, सीता को वनवास. पर भरत के प्रबंध में कोई अन्याय नहीं हुआ. यह इसलिए हुआ कि भरत राजा नहीं सेवक थे, राम के प्रतिनिधि थे. वह राम द्वारा मनोनीत अयोध्या के ट्रस्टी थे.
6 comments:
shabdo ke her pher se kuch nahi hoga. baat man parivartan aur imandari ki ho tabhi sab sahi hoga..
नारंग जी की बात सही है।
राजनीति का मतलब है वंशवाद---जिसके वंश का पत्ता काट दिया, वो विद्रोही....
लानत है ऎसी राजनीति पर ओर ऎसे नेताओ पर.
आज भी आप ने हमेशा की तरह से एक बेहतरीन बात लिखी,
धन्यवाद
आज भारत में राजनीति सेवा का साधन न रहकर एक व्यवसाय बन गयी है यह शब्द 'राजनीति' ही सारे फसाद की जड़ है.
'एक घिनोना सच "
regards
@बात मन परिवर्तन और ईमानदारी की हो तभी सब सही होगा.
सही है, पर इसकी शुरुआत कैसे होगी? क्या मन ऐसे ही परिवर्तित ही जायेगा? क्या ईमानदारी ऐसे ही आ जायेगी? बिना सोच बदले और उस सोच को बिना कोई शब्द दिए क्या यह सम्भव हो पायेगा? मेरे विचार से नहीं.
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