Wednesday, July 23, 2008

बेशर्मी के विश्व रिकार्ड्स

देख रही थी सारी दुनिया,
कपूत कर रहे थे शर्मिंदा मां को,
बना रहे थे रिकार्ड पर रिकार्ड,
बेईमानी, अनैतिकता, भ्रष्टाचार, अशुचिता के,
तालियाँ बज रही थीं, वाह-वाह हो रही थी,
अपमानित हो रही थी भारत मां,
अपने ही बेटों द्बारा.


राहुल गाँधी ने सुनाई कहानी एक कलावती की,
जिसका भविष्य सुरक्षित होगा परमाणु करार से,
खूब तालियाँ बजीं, चमचे चिल्लाये,
देश का भविष्य सुरक्षित है,
इस भावी प्रधानमंत्री के हाथों में,
पर कौन है यह कलावती?
बताया एक अखबार ने,
कलावती है एक गरीब विधवा,
सात बेटिओं और दो बेटों की मां,
उधार के भार से कर ली थी आत्महत्या उसके पति ने,
खेती करता था पर किसान नहीं था,
सरकारी परिभाषा ही कुछ ऐसी है,
इस लिए नहीं मिली उसे कोई सहायता,
न ही की उसकी सहायता राहुल गाँधी ने,
न राहुल की पार्टी ने,
न राहुल की पार्टी की आम आदमी की सरकार ने,
बस उसकी कहानी सुना दी,
वह भी अधूरी और निज स्वार्थसिद्धि के लिए.
कलावती की झोपड़ी में बिजली नहीं है,
उसके किराए के खेत में पम्प नहीं है,
क्या करेगी वह परमाणु बिजली का?
कब आएगी यह बिजली उसके गाँव में?
क्या वह जीवित रहेगी तब तक?
झोपड़ी की छत का हर हिस्सा टपकता है वारिश में,
दो वक्त की रोटी बहुत मुश्किल से जुटा पाती है,
यह सब नहीं बताया राहुल ने,
राहुल ने यह भी नहीं बताया,
कलावती ने दो दिन से कुछ नहीं खाया,
पर राहुल ने उसे रोटी नहीं भिजवाई,
बस कहानी सुना दी उसकी लोकसभा में,
राहुल की महानता और ज्यादा महान हो गई.


जो वोटिंग से गायब हो गए,
या जिन्होनें करार के ख़िलाफ़ वोट डाला,
ya जिन्होनें करार के पक्ष में वोट डाला,
क्या उन्होंने परमाणु करार का मसौदा पढ़ा है?
क्या वह उसे समझ पाये हैं?

मौका है, बदल डालो कानून,
सब प्रधानमन्त्री बनना चाहते हैं,
'एमपी' को कर दो 'पीएम',
हो सकते हैं प्रधानमन्त्री एक नहीं एक हज़ार,
लड़ कर खा रहे हैं देश को,
मिल जुल कर खाएं,
जो जीते चुनाव कहलाये पीएम.

सोमनाथ दा ने बनाया रिकार्ड,
बहस के दौरान मुस्कुराते रहने का,
बार बार देखते थे इलेक्ट्रोनिक बोर्ड को,
मंद-मंद मुस्कुराते थे,
डांटते थे सदस्यों को मुस्कुराते हुए,
कहते थे अपनी सीट पर जाओ, मुस्कुराते हुए,
लगता है, विश्वास मत की जीत पर,
सबसे ज्यादा खुशी हुई सोमनाथ दा को.

मनमोहन जी ने विश्वास मत हासिल किया,
पर ज्यादा वधाइयां मिलीं सोनिया जी को,
कुछ देर खरे रहे वह अकेले,
फ़िर बढ़ गए दरवाजे की तरफ़,
किसी ने नहीं देखा उनका जाना,
जीत में अकेलापन,
कैसा लगा होगा यह अनुभव.

5 comments:

अंकुर गुप्ता said...

राहुल गांधी के बारे में आपने १०१% सही कहा. मैं आपसे सहमत हूं.

Anonymous said...

bhut sahi likha hai. agar kisi ke dard ke bare me pata hai to svam hi kuch karana sahi hai. sabhi ko batane me kya hai.

कुश said...

अवसाद से ग्रसित राजनीति के चेहरे पर करारा तमाचा है ये

बहुत सही लिखा है आपने

राज भाटिय़ा said...

क्या यही हे ईमान दार मन मोहन जी,अरे लोग तो अपने दामन को साफ़ रखने के लिये बहुत सी कुर्बानिया देते हे,हमारे ईमान दार प्रधान म...वाह री दुनिया

Anonymous said...

प्रधान मंत्री बनने से पहले हो सकता है मनमोहन जी का दामन साफ़ रहा हो, पर अब तो उसमें इतने दाग हैं कि गिनना मुश्किल है. सरकार बचाने कि लिए उन्होंने जो किया वह तो बेईमानी, अनेतिकता, अशुचिता, अवसरवादिता के सभी रिकार्ड को धराशाई कर गया. नरसिम्हा राव तो बच्चे लग रहे हैं मनमोहन जी के सामने.