आज सुबह पार्क में एक सज्जन ने पंजाब केसरी में छपी एक ख़बर की और मेरा ध्यान दिलाया. आप भी देखिये इसे.
लिस्ट में चार ब्राह्मण, चार पंजाबी, एक वैश्य, दो मुसलमान, तीन गुर्जर, दो जाट शामिल हें। हर उम्मीदवार के नाम के आगे उसकी जाति का नाम लिखा है।
जाति की राजनीति का इस से बढ़कर नंगापन क्या हो सकता है? कोई दूसरा अगर जाति की और इंगित कर देगा तो बबाल मच जाएगा. सरकार और पुलिस सब हरकत में आ जायेंगे. राजनीतिबाज चीख चीख कर आसमान सर पर उठा लेंगे. ख़ुद यह पार्टियां कुछ भी करें. हर उम्मीदवार के नाम के आगे उसकी जति का उल्लेख करना क्या चुनावी कानून का उल्लंघन नहीं है? क्या ऐसा करके जति के आधार पर वोट नहीं मांगे जा रहे? पर कौन करेगा कार्यवाही इस पर? सभी तो एक थैली के चट्टे-बट्टे हैं.
4 comments:
आप इस समाचार की कटिंग को ध्यान से देखें। यह समाचार पत्र के नगर संवाददाता की बनाई खबर है। अखबार वाले ही हर चुनाव में जाति की गणना करते हैं।
कानून कायदे सिर्फ आम आदमी के लिए होते हैं कोई दूसरा जब जाति की तरफ इशारा करता है तो वो आम आदमी होता है इसलिए उस पर सब कानून लागू हो जाते हैं. यहाँ तो सभी जाति, धर्म भाषा की सीढियों पर पावं रख कर सत्ता की बागडोर संभाल रहे हैं कौन किस पर ऊँगली उठाएगा
अनाम जी की बात गौरतलब है. पार्टी भी जातिगत राजनिति वोटर बैंक के आधार पर विचारती है किन्तु ऐसे प्रत्याशी के नाम के साथ लिखकर तो घोषित नहीं करती. यह विश्लेषण तो अखबार, मिडिया और विश्लेषक कर देते हैं परिणामों का आंकलन करने के लिए.
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