आज मैंने अखबार में पढ़ा कि समाजवादी पार्टी का एक नेता बहुजन समाज पार्टी में दाखिल हो गया है. समाचार पूरा पढ़ कर पता चला कि यह नेता बिक गया है. काफ़ी कीमत दे कर ख़रीदा है इसे मायावती ने. उस कीमत की लिस्ट देखिये - एक, आने वाले लोक सभा चुनावों में फरुखाबाद से टिकट, दो, उस के बेटे के लिए हरदोई से उत्तर प्रदेश विधान सभा का टिकट, तीन, राष्ट्रिय जनरल सेक्रेटरी का पद. यह नेता है नरेश अग्रवाल. भारतीय राजनीति पर एक कलंक. यह बिके हुए नेता प्रदेश और देश का दोनों का बंटाधार करेंगे.
अब बदले में यह बिका नेता पार्टी को क्या देगा? उस ने मायावती से बायदा किया है कि वह वैश्य बिरादरी के सारे वोट उन्हें दिलवाएगा. उसने मायावती को अगला प्रधान मंत्री और देश का रक्षक कर्णधार भी कहा है. भारतीय राजनीति पर एक कलंक होने के साथ-साथ यह व्यक्ति वैश्य बिरादरी पर भी कलंक है. किस ने अधिकार दिया इसे वैश्य बिरादरी के वोटों पर? है कौन यह व्यक्ति? मैं एक वैश्य हूँ, मैं इसे नहीं जानता, मैं ऐसे किसी व्यक्ति को वैश्य ही नहीं मानता. यह तो बिकाऊ माल है, जिन्हें जो मर्जी खरीद ले. आज कोई और पार्टी इस से अच्छी कीमत दे दे तो यह उस के हाथ बिक जायेगा, और उसके मालिक को अगला प्रधान मंत्री घोषित कर देगा.
वैश्य बिरादरी को चाहिए कि इसे और इस जैसे सभी बिके हुए राजनीतिबाजों को बिरादरी से बाहर निकाल दे. हुक्का पानी बंद होना चाहिए ऐसे घटिया लोगों का.
Thursday, May 29, 2008
Monday, May 19, 2008
कमाल है, यह कुछ भी करें सब माफ़ है!
आज सुबह पार्क में एक सज्जन ने पंजाब केसरी में छपी एक ख़बर की और मेरा ध्यान दिलाया. आप भी देखिये इसे.
लिस्ट में चार ब्राह्मण, चार पंजाबी, एक वैश्य, दो मुसलमान, तीन गुर्जर, दो जाट शामिल हें। हर उम्मीदवार के नाम के आगे उसकी जाति का नाम लिखा है।
जाति की राजनीति का इस से बढ़कर नंगापन क्या हो सकता है? कोई दूसरा अगर जाति की और इंगित कर देगा तो बबाल मच जाएगा. सरकार और पुलिस सब हरकत में आ जायेंगे. राजनीतिबाज चीख चीख कर आसमान सर पर उठा लेंगे. ख़ुद यह पार्टियां कुछ भी करें. हर उम्मीदवार के नाम के आगे उसकी जति का उल्लेख करना क्या चुनावी कानून का उल्लंघन नहीं है? क्या ऐसा करके जति के आधार पर वोट नहीं मांगे जा रहे? पर कौन करेगा कार्यवाही इस पर? सभी तो एक थैली के चट्टे-बट्टे हैं.
लिस्ट में चार ब्राह्मण, चार पंजाबी, एक वैश्य, दो मुसलमान, तीन गुर्जर, दो जाट शामिल हें। हर उम्मीदवार के नाम के आगे उसकी जाति का नाम लिखा है।
जाति की राजनीति का इस से बढ़कर नंगापन क्या हो सकता है? कोई दूसरा अगर जाति की और इंगित कर देगा तो बबाल मच जाएगा. सरकार और पुलिस सब हरकत में आ जायेंगे. राजनीतिबाज चीख चीख कर आसमान सर पर उठा लेंगे. ख़ुद यह पार्टियां कुछ भी करें. हर उम्मीदवार के नाम के आगे उसकी जति का उल्लेख करना क्या चुनावी कानून का उल्लंघन नहीं है? क्या ऐसा करके जति के आधार पर वोट नहीं मांगे जा रहे? पर कौन करेगा कार्यवाही इस पर? सभी तो एक थैली के चट्टे-बट्टे हैं.
Sunday, May 18, 2008
जो शर्त पूरी करेगा उसे वोट दूँगा
मैं दिल्ली में रहता हूँ. दिल्ली में अगले वर्ष चुनाव होंगे. राजनितिक पार्टियाँ अभी से चुनावी मोड में आ गई हैं. मतदाताओं को भी चुनावी मोड में आ जाना चाहिए. ऐसा लग रहा है कि दलित वोट इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे. दलितों को घेरने की तैयारी शुरू हो चुकी है. मायावती और राहुल की मामा दोनों मैदान में उतर आई हैं. मायावती ख़ुद उतरी हैं मैदान में. राहुल की मामा ने मैदान में उतारा है राहुल को .
जब कोई दलितों के लिए कुछ करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. दोनों मेरे वोट के हक़दार हैं. पर यह कैसे तय किया जाए कि दोनों में दलितों का ज्यादा हमदर्द कौन है? मेरे विचार में दोनों के सामने एक शर्त रखी जाए. राहुल किसी दलित कन्या से विवाह करे. मायावती अपना सारा धन और जायदाद दलितों में बाँट दे. जो शर्त पूरी करेगा उसे वोट दूँगा. पर यह शर्त चुनाव से पहले पूरी होनी चाहिए.
जब कोई दलितों के लिए कुछ करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. दोनों मेरे वोट के हक़दार हैं. पर यह कैसे तय किया जाए कि दोनों में दलितों का ज्यादा हमदर्द कौन है? मेरे विचार में दोनों के सामने एक शर्त रखी जाए. राहुल किसी दलित कन्या से विवाह करे. मायावती अपना सारा धन और जायदाद दलितों में बाँट दे. जो शर्त पूरी करेगा उसे वोट दूँगा. पर यह शर्त चुनाव से पहले पूरी होनी चाहिए.
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